तिलस्मी किले का रहस्य भाग_ 12
कहानी _ **तिलस्मी किले का रहस्य**
भाग_ 12
लेखक _ श्याम कुंवर भारती
प्रताप पेड़ पर चढ़कर फल तोड़ने लगा ।लेकिन सुरभी झील में मछलियों और पक्षियों को देखने में मग्न थी।सारे फल नीचे जमीन पर गिर रहे थे ।
प्रताप ने चिल्लाकर कहा _ तुम्हारा ध्यान किधर है सुरभी इधर आओ फलों को समेटो।
सुरभी ने भी चिल्लाकर कहा _ मुझपर चिल्लाओ मत आ रही हूं ।फल तोड़ रहे हो कोई पहाड़ नही तोड़ रहे हो।
प्रताप उसका जवाब सुनकर झल्ला गया ।अजीब लड़की है इसके लिए फल तोड़ रहा हूं और उल्टे मूझपर ही चिल्ला रही है।लेकिन कुछ बोला नहीं चुपचाप पके _ पके फल तोड़ने लगा।
तभी सुरभी जोर से चीख उठी ।प्रताप ने चौंक कर नीचे देखा ।सुरभी के सामने एक खूंखार भेड़िया उसे घूर रहा था।सुरभी डर से चिल्ला रही थी ।
प्रताप फुर्ती से पेड़ पर से उतरने लगा और उसे हिम्मत बढ़ाते रहा तुम डरना नहीं मैं आ रहा हूं।
नीचे उतरकर उसने सुरभी से कहा_ तुम मेरा भाला मेरी तरफ फेंको और अपनी तलवार लेकर तैयार रहो।
सुरभी भाला उसकी तरफ फेंक दिया ।प्रताप ने भाला पकड़कर भेड़िया को ललकारा ।
भेड़िया घूमकर उसकी तरफ देखने लगा।प्रताप भाला को उसकी तरफ करके आक्रमण की मुद्रा में आ गया ।तभी भेड़िए ने उसपर छलांग लगा दिया।सुरभी चीख उठी _ बचो प्रताप ।
प्रताप भी भाला लेकर हवा में उछल गया।भाला भाला भेड़िया के पेट में घुसता हुआ पार हो गया ।भेड़िया दर्द से कराहने लगा और जमीन पर गिर पड़ा।
दोनो ने राहत की सांस लिया।तुमको कोई चोट तो नही लगी सुरभी ने प्रताप से पूछा।
जवाब देने की बजाय उसने सुरभी से पूछा तुम तो ठीक हो ।
हां मैं ठीक हूं लेकिन मुझे इस खूंखार भेड़िया से बहुत डर लग रहा है।
सुरभी ने डरते हुए कहा।
भेड़िया दर्द से कुँ कुं कर रहा था।उसके पेट से खून निकल रहा था।प्रताप को उसपर दया आ गई। उसने भाला उसके पेट से निकाल लिया।भेड़िया के पेट से खून निकलने लगा।
प्रताप ने अपनी जेब से रुमाल निकालकर उसके पेट में कसकर बांध दिया।लेकिन भेड़िया ने उसपर कोई हमला नही किया।शायद उसने प्रताप की दयालुता को अनुभव कर लिया था और उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट कर रहा था वो चुपचाप पड़ा रहा।
तुम भी कमाल कर रहे हो ।ऐसे खूंखार जानवर पर दया दिखा रहे हो।ठीक होकर पता नही हम पर फिर हमला कर दे।सुरभी ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा।
तुम चिंता मत करो अब ये हम पर हमला नही करेगा।ये भी भावना को समझ रहा है वैसे भी अभी ये बुरी तरह घायल हो चुका है।अगर ये नाराज होकर जंगल में भागा होता तो पता नही कितने भेड़ियों को बुला लाया होता हम पर हमला करने के लिए।
किले में तालाब के पास शाम हो चुकी थी ।पुलिस और एनडीआरएफ की पूरी टीम किले के चप्पे चप्पे को छान चुकी थी ।कही कोई सुराग नहीं मिल रहा था जिससे प्रताप और सुरभी का पता लगाया जा सके ।जितने भी इतिहासकार और किले कर जानकर थे।किले की प्रबंधन समिति सभी से किले के गुप्त रास्ता ,सुरंग और तहखाना के बारे में पुलिस जानकारी ले रही थी।लेकिन सब लोग किलो के बाहर हिस्से के बारे में जितना जानते थे बता रहे थे।
पुलिस ने कई बंद कमरों को खुलवा कर जांच किया लेकिन कही कोई सुराग नहीं मिल रहा था।
मीडिया में उन दोनो की खबरे लाइव चल रही थी ।वे दोनो चर्चा का विषय बन चुके ।जो भी। इस हैरत गंज खबर को सुनता दंग रह जाता था।आखिर तालाब के बीचों बीच से अचानक दो लड़का लड़की कैसे गायब हो सकते है ।तालाब का पूरा पानी खाली करा दिया गया मगर फिर भी दोनो जिंदा या मुर्दा क्यों नही मिले।
यह खबर प्रताप के बूढ़े और गरीब माता पिता को भी लगी ।वो दोनो चिंता से रोने लगे। घबडा गए।प्रताप के छोटे भाई बहन भी चिंतित हो गए।उधर सुरभी के विधायक पिता पीतांबर सिंह को जैसे ही अपनी बेटी सुरभी के अजीबो गरीब तरीके से गायब होने की खबर लगी वो बेहद चिंतित हो गए।उसके पिता ने तुरंत फोन कर जिला के डीएम को अपनी बेटी की तलास हर हाल में करने को कहा ।
डीएम को जैसे ही पता चला सुरभी विधायक पीतांबर सिंह की बेटी है उसने तुरंत एसपी को फोन के विधायक के बारे में बताया और कहा_ किसी भी तरह उन दोनो लड़के लड़कियों की तलाश करवाए वरना विधायक जी यह मामला सरकार तक ले जा सकते है और हम दोनो के लिए बड़ी मुश्किल होगी ।
पीतांबर सिंह ने अपनी पत्नी सुमित्रा देवी पर नाराज होते हुए बोले _ मैंने मना किया था सुरभी को नौकरी करने की कोई जरूरत नहीं है ।उसकी पढ़ाई पूरी हो गई है ।अब उसकी शादी करा देते है लेकिन तुम दोनों ने मेरी बात नही मानी तुमने उसे नोकरी के लिए परीक्षा देने भेज दिया वो भी अकेले।अब देखो किला के तालाब से वो गायब हो गई है ।उसके साथ एक लड़का भी है ।पता नही मेरी बेटी किस हाल में होगी।
सुमित्रा देवी अपने बेटी के बारे में सुनकर रोने लगी और बोली _मेरी बेटी को किसी तरह ढूंढवाकर लाए मेरा दिल घबड़ा रहा है।
प्रताप ने कहा अच्छा छोड़ो इसकी चिंता चलो फलों को पहले पानी में धो लेते है ।फिर साथ में खाते है ।
देखो शाम ढल रही है जल्दी ही रात गुजारने का कोई ठिकाना ढूंढना होगा ।किला में जा नही सकते अब वहा भी अंधेरा होगा ।इधर जंगली जानवरों को खतरा है ।
सुरभी ने सभी फलों को समेट लिया और दोनों झरना के पानी में फलों को जल्दी जल्दी खाने लगे।
फल काफी स्वादिष्ट और मीठे थे।सुरभी ने पेटभर कर फल खाया।
बड़ी फुक्खड़ लड़की हो कितना खाती हो ।प्रताप ने कहा।
मेरे खाने को नजर मत लगाना तुम समझे न।एक तो इतना कम फल तोड़ा और ऊपर से नजर लगा रहे हो ।सुरभी ने नाराज होकर कहा।
अगर और फल तोड़ने में लगा रहता तो भेड़िया तुम्हारा चटनी बना दिया होता समझी की नही ।बात करती है पागल लड़की ।जितना भी करो इसके लिए उतना ही मेरा दिमाग खाती है प्रताप ने नाराज होते हुए कहा ।
अब चलो कोई ठिकाना ढूंढो अब मुझे नींद आ रही है।सुरभी ने अंगड़ाई लेते हुए कहा।
देखता हूं हुक्म तो ऐसे दे रही हो जैसे किसी स्टेट की महारानी हो ।
प्रताप ने अपना भाला पकड़कर खड़ा होते हुए कहा ।
क्या करने आया था और इस लड़की के चक्कर में कहा फंस गया।उसने खुद से बड़बड़ाते हुए कहा।
जब इतना ही अफसोस हो रहा है तो क्यों मेरे पीछे मुझे बचाने के लिए कूदे थे मैने कहा था क्या?
सुरभी ने झगड़ा करते हुए कहा।
भूल हो गई महारानी जी अब चुप रहो मुझे कुछ सोचने दो।
प्रताप ने सुरभी के सामने हाथ जोड़कर चुप रहने के लिए कहा और चारो तरफ देखते हुए सोचने लगा।
बड़ी झगड़ालू लडकी है ।कहा से मेरे मत्थे पड़ गई और इस मुसीबत में डाल दिया। उसमे मन में सोचते हुए कहा।
तुम मन ही मन में मुझे गाली तो नही दे रहे हो ।सुरभी में उसे सोचते हुए देखकर कहा।
अब शांति से सोचने भी नही दोगी क्या। जरा थोड़ी देर शांत रहो प्रताप ने कहा।
तभी उसने अपना भाला उसे देते हुए कहा _ लो पकड़ो इसे और अपनी तलवार मुझे दो ।सुरभी ने वैसा ही किया।
प्रताप ने जंगल में तलास कर कई मोटी और मजबूत लताओ किया तलास कर काट लिया और पेड़ो को ढेर सारी टहनियां काट लिया ।सुरभी भी उसके साथ साथ उसकी सहायता कर रही थी।
अब प्रताप ने कुछ ऐसे पेड़ तलास किया जो आपस में सटे हुए थे।
उसे ऐसे पेड़ जल्दी ही मिल गए।
उसने उसपर लकड़ी का मचान बनाना शुरू किया ।करीब एक घंटा में उसने मचान बना लिया जिसपर दो आदमी आराम से सो सकते थे।
इससे उन्हें जंगली जानवरों का डर नही होता और रात में सांप आदि से भी रक्षा होती ।उसने कुछ डालियों को ऊपर से बांधकर छाया कर दिया ताकि रात में ओस से बच सके।
उसने सहायता करके सुरभी को ऊपर मचान पर चढ़ा दिया और कुछ पत्तो को मचान पर बिछा दिया ताकि सोने में आरामदायक रहे।
मचान पर पहुंचते ही सुरभी सो गई और उसकी नाक बजने लगी ।लेकिन प्रताप को नींद नहीं आ रही थी।उसे खुद से ज्यादा सुरभी की चिंता हो रही थी।
अचानक उसे नींद आ गई और वो भी खराटे लेने लगा।तभी उसने अपने पैरो के पास किसी ठंडी चीज का अनुभव किया और उसकी नींद टूट गई।उसने तुरंत अपने बगल में रखे अपने भाला को अपने हाथो में कसकर पकड़ लिया और सोए हुए अंदाजा लगाने लगा पैरो के पैरो के पास कौन सी आफत हो सकती है।उसने सुरभी को ओर देखा वो बेसुध होकर खर्राटे लेते हुए सो रही थी।
शेष अगले भाग _ 13 में
लेखक _ श्याम कुंवर भारती
बोकारो, झारखंड
मो.९९५५५०९२८६
Madhumita
23-Jan-2024 07:19 PM
Nice one
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Varsha_Upadhyay
23-Jan-2024 05:29 PM
बहुत खूब
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Gunjan Kamal
23-Jan-2024 03:58 PM
👏👌
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